हजारों करोड़ का ई-टेंडर घोटाला! सुप्रीम कोर्ट ने कसा शिकंजा — मुंबई APMC टेंडर भी जांच के दायरे में!

“राजनीतिक-नौकरशाही गठजोड़ पर तगड़ा वार”
नवी मुंबई ,एपीएमसी न्यूज़ नेटवर्क : देश की डिजिटल पारदर्शिता पर गहरा सवाल खड़ा करने वाला एक और बड़ा भ्रष्टाचार कांड अब उजागर हो चुका है। जनहित याचिका (डायरी संख्या 4946/2025) के माध्यम से वरिष्ठ पत्रकार अनिल तिवारी ने जो खुलासे किए हैं, वे न केवल चौंकाने वाले हैं बल्कि यह भी दर्शाते हैं कि ई-गवर्नेंस और ऑनलाइन निविदा व्यवस्था भी संगठित भ्रष्टाचार से अछूती नहीं रही।
आरोपों का जाल — कंपनियों की मिलीभगत और सरकारी संरक्षकता
• महाराष्ट्र के जल आपूर्ति एवं स्वच्छता विभाग (WSSD) ने ईगल इंफ्रा इंडिया प्राइवेट लिमिटेड को ₹560 करोड़ के ठेके दिए, जबकि कंपनी पर पहले से घटिया निर्माण और हादसों के आरोप दर्ज हैं।
• सुमीत बाजोरिया इंफ्रास्ट्रक्चर प्रा. लि. और बाजोरिया कंस्ट्रक्शन प्रा. लि. के बीच कथित सांठगांठ के सबूत — एक ही आईपी एड्रेस, ईमेल और साझा निदेशक।
• ईगल कंस्ट्रक्शन, खिलारी इंफ्रास्ट्रक्चर और पी एंड सी प्रोजेक्ट्स प्रा. लि. ने तमिलनाडु में ₹1,300 करोड़ का संयुक्त टेंडर जीता, और कुछ ही दिनों बाद महाराष्ट्र में अलग-अलग बोली लगाई — जो कथित मिलीभगत का पुख्ता संकेत है।
• हाल ही में APMC से जुड़ा ₹40 करोड़ का टेंडर भी जांच के दायरे में आ गया है।
सुप्रीम कोर्ट की सख्ती
1 अगस्त 2025 को न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदरेश और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने इस मामले की गंभीरता को देखते हुए आदेश दिया कि आगामी निविदाओं पर उठाई गई सभी आपत्तियों पर विभागों को अनिवार्य रूप से विचार करना होगा। कोर्ट की यह टिप्पणी साफ इशारा देती है कि इस मुद्दे को अब सिर्फ प्रशासनिक स्तर पर दबाया नहीं जा सकेगा।
जनहित से जुड़ी गंभीर चुनौती
यह मामला केवल एक वित्तीय घोटाले तक सीमित नहीं है यह भारत में सार्वजनिक निविदा प्रणाली के भविष्य पर सवालिया निशान लगा रहा है। यदि आरोप सिद्ध होते हैं, तो यह देश का अब तक का सबसे बड़ा ई-टेंडर घोटाला बन सकता है जिसमें न केवल ठेकेदारों और अधिकारियों की मिलीभगत है, बल्कि राजनीतिक संरक्षण का भी गहरा संदिग्ध साया दिखाई देता है।
ई-निविदा व्यवस्था को भ्रष्टाचार-मुक्त और पारदर्शी बताकर लागू किया गया था। लेकिन यदि सिस्टम के भीतर ही लोग कानून तोड़ने की योजना बना लें, तो डिजिटल तकनीक भी भ्रष्टाचार की ढाल बन सकती है। इस प्रकरण में सर्वोच्च न्यायालय की सक्रियता यह उम्मीद जगाती है कि कम से कम इस बार ‘ई-टेंडर’ का ईमानदार ऑडिट होगा, दोषियों पर कार्रवाई होगी, और पारदर्शिता के नाम पर जो पर्दा डाला गया है, वह हटेगा।